OCTOBER -NOVEMBER INTERNATIONAL HINDI ASSOCIATION'S NEWSLETTER
अक्टूबर-नवम्बर {{time_now|date:"2006"}}, अंक ४० । प्रबंध सम्पादक: श्री आलोक मिश्र। सम्पादक: डॉ. शैल जैन
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Human Excellence Depends on Culture. The Soul of Culture is Language
भाषा द्वारा संस्कृति का प्रतिपादन
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति परिवार के सभी सदस्यों एवं संवाद के पाठकों का हार्दिक अभिनंदन!
गाँधी जयंती, अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस, लाल बहादुर शास्त्री जयंती, नवरात्रि, दशहरा, करवा चौथ, हैलोवीन एवं ’राष्ट्रीय एकता दिवस’ की शुभकामनाएँ प्रेषित करती हूँ।
हिंदी आधिकारिक भाषा का 75वां साल – इस वर्ष 14 सितंबर का दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार होने की 75वीं वर्षगांठ को चिह्नित किया। 14 सितंबर, 1949 को, हिंदी को भारत की संविधान सभा में केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया गया था। हिंदी हमारी भाषाई धरोहर और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति की विभिन्न शाखाओं और कुछ आउटरीच राज्यों ने इस विशेष दिन को अपने स्थानीय क्षेत्रों में हर्षोल्लास के साथ मनाया। ह्यूस्टन, न्यू जर्सी, टेनेसी, और इंडियाना की रिपोर्ट सितंबर माह के संवाद में प्रकाशित की जा चुकी है। इस अंक में शारलॉट, नॉर्थ ईस्ट ओहियो, और डालस के कार्यक्रमों की रिपोर्ट संलग्न है। मैं सभी शाखाओं और आयोजकों को तहे दिल से धन्यवाद देती हूँ जिन्होंने कार्यक्रम को सफल बनाने में और अ.हि.स.के उदेश्य के प्रति अपना योगदान दिया।
अ.हि.स. का द्विवार्षिक सम्मेलन – अगले वर्ष 2025 में हमारा द्विवार्षिक सम्मेलन नॉर्थ ईस्ट ओहायो में 2 से 4 मई तक आयोजित हो रहा है। कृपया इन तारीखों को अपने कैलेंडर में चिह्नित करें। विस्तृत जानकारी शीघ्र ही प्रकाशित की जाएगी। आप सभी से सहयोग की अपील है, ताकि यह कार्यक्रम सफल हो सके।
हमारी वेबसाइट – हमारी समिति की वेबसाइट का विकास कार्य प्रगति पर है ताकि यह हमारे सदस्यों और हिंदी व भारतीय संस्कृति में रुचि रखने वाले लोगों के लिए अधिक सुलभ हो। इस दौरान यदि आपको किसी प्रकार की समस्या का सामना करना पड़े, तो कृपया हमसे संपर्क करें, हम आपकी सहायता करने के लिए तत्पर हैं।
विश्वा पत्रिका – हमारी त्रैमासिक पत्रिका ‘विश्वा’ का अक्टूबर 2024 अंक प्रकाशित हो गया है। यह पत्रिका करीब 40 सालों से निरंतर प्रकाशित हो रही है। शुरुआत में कभी हाथ से लिखकर, तो कभी कम पृष्ठों का निकाल कर समिति ने पत्रिका को जीवित रखा। इसमें हिंदी भाषा एवं भारतीय संस्कृति से संबंधित महत्वपूर्ण सामग्री होती है। अब आप ‘विश्वा’ के अंक अपनी फोन या टैबलेट पर भी पढ़ सकते हैं। अ.हि.स. के वेबसाइट hindi.org पर जाकर आप पुरानी एवं नई सभी प्रतिलिपियों को पढ़ सकते हैं। ‘विश्वा’ हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति की झलकियों और इतिहास को प्रस्तुत करती है। मैं प्रबंध संपादक आलोक मिश्र, संपादक रमेश जोशी, और उनकी पूरी टीम को धन्यवाद देती हूँ।
ई-न्यूज़ लेटर संवाद – हमारा मासिक पत्र ‘संवाद’ लगभग तीन वर्षों से प्रकाशित हो रहा है। इसमें नए लेखकों को अपनी रचनाएँ प्रकाशित करने का मौका मिलता है और विभिन्न शाखाओं व आउटरीच राज्यों के कार्यक्रमों की जानकारी दी जाती है। पाठकों से अनुरोध है कि वे अपनी अप्रकाशित रचनाएँ और समाचार हमसे साझा करें। मैं प्रबंध संपादक आलोक मिश्र, संपादक डॉ शैल जैन और उनकी पूरी टीम को धन्यवाद देती हूँ।
‘ई-पत्र संवाद’ और ‘विश्वा’ दोनों ही हमें एक दूसरे से जोड़ते हैं, मनोरंजन करते हैं और जानकारियाँ देते हैं। हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति के प्रति जागरूक भी करते हैं। इनके द्वारा हम न केवल अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के सदस्यों बल्कि उन सभी महानुभावों जो हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति से प्रेम करते हैं, सबों से जुड़ते हैं। यदि आप हमारे सदस्य नहीं हैं और हमारे ‘ई-पत्र’ और ‘ई-विश्वा’ से नहीं जुड़े हैं, किंतु इनका आनंद लेना चाहते हैं तो हमारी वेबसाइट hindi.org पर रजिस्टर कर सकते हैं।
यदि आप हमारी समिति के किसी विशेष कार्य में सहयोग करना चाहते हैं, तो कृपया हमें सूचित करें। आपके सुझावों और विचारों का हमेशा स्वागत है।
धन्यवाद,
डॉ. शैल जैन
राष्ट्रीय अध्यक्ष, अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (2024-25)
ईमेल: president@hindi.org | shailj53@hotmail.com
सम्पर्क: +1 330-421-7528
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति – हिंदी सीखें
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति -- आगामी कार्यक्रम
२२ वाँ द्विवार्षिक अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन २०२५
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति का २२ वाँ द्विवार्षिक अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन
दिन -मई २ (शुक्रवार) एवं ३ (शनिवार ) , २०२५
स्थान - रिचफील्ड, ओहायो
आतिथ्य – अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति. की उत्तरपूर्व ओहायो शाखा
अधिवेशन का मूल विषय – 'नव पीढ़ी, डिजिटल युग में हिंदी और संस्कृति'
Theme -'New Generation, Hindi and Culture in the Digital age'
नोट - अधिवेशन में सारी गतिविधियाँ मूल विषय के लक्ष्य की पूरक रहेंगी ।
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति -- हूस्टन शाखा आगामी कार्यक्रम
दिसम्बर ६ , २०२४
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अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति-उत्तरपूर्व ओहायो शाखा, क्लीवलैंड
हिन्दी दिवस समारोह
सितम्बर 29. 2024
प्रस्तुति: डॉ सोमनाथ राय, सचिव,अ.हि.स.,उ.पू.ओहायो शाखा
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अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति-उत्तरपूर्व ओहायो शाखा ने २९ सितम्बर, २०२४ को शिवा विष्णु टेम्पल, क्लीवलैंड में बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ ७५वाँ ‘हिन्दी दिवस’ मनाया। इस कार्यक्रम के आयोजन में क्लीवलैंड शिवा विष्णु टेम्पल के कार्यकारी सदस्यों ने सक्रियता के साथ भागीदारी निभाई। कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक दीप प्रज्वलन की रस्म से हुई। दीप प्रज्वलन श्रीमती विमल शरण, शाखा की पहली अध्यक्षा; श्रीमती श्वेता चारी, शिव विष्णु टेम्पल की कार्यकर्ता; डॉ. संजय चौधरी, शाखा के सहायक; श्रीमती रेणु चड्डा, शाखा की पूर्व अध्यक्षा; डॉ. तसनीम लोखंडवाला, शाखा की संयोजिका; श्रीमती प्रेम करवा, शाखा की स्थानीय स्वयंसेवक; डॉ. शैल जैन, अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति की राष्ट्रीय अध्यक्षा के द्वारा किया गया।
तत्पश्चात् समारोह संयोजिका श्रीमती सुनीता द्विवेदी जी ने सांस्कृतिक कार्यक्रम परिचालन करने का दायित्व सम्भाला और उनकी सहायता के लिए मंच पर डॉ शोभा खंडेलवाल एवम् श्रीमती रेणु चड्डा उपस्थित रहे।
कार्यक्रम की शुरूआत श्री गुलाब खंडेलवाल जी की लिखी हुई सरस्वती वंदना, अई मानस कमल बिहारिणी…. से हुई, जिसे नृत्य रूप में प्रस्तुत किया उनकी पड़-पोती, कुमारी विद्या खंडेलवाल ने । उसके बाद अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति के उत्तरपूर्व ओहायो शाखा के अध्यक्ष श्रीमान अश्वनी भरद्वाज ने उपस्थित श्रोतागणों का स्वागत किया।
उन्होंने हिन्दी समिति का उद्देश्य जो कि राजभाषा हिन्दी का संरक्षण, पोषण एवम् प्रसार करना है, उसके लिए किए जा रहे कार्यक्रमों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। तत्पश्चात् अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति की राष्ट्रीय अध्यक्षा डॉ शैल जैन ने सभा को संबोधित किया एवम् भारत की समृद्ध भाषा और सांस्कृतिक विरासत के बारे में लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। इसके अतिरिक्त लोगों को एकजुट करने एवम् भारतीय संस्कृति का संरक्षण करने में हिन्दी भाषा की क्या भूमिका है, उसके बारे में भी लोगों को विस्तार से बताया।
इस हीरक जयंती वर्ष के समारोह में कुल मिलाकर बहुत ही आकर्षक १४ सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए, जिन्हें लोगों ने बहुत पसंद किया एवम् तालियों की गड़गड़ाहट से कलाकारों का मनोबल भी बढ़ाया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में काव्य-पाठ (महाभारत के पन्नों से), कविता पाठ, संगीत, राष्ट्र-भक्ति गीतों पर नृत्य, वाद्य-संगीत (हारमोनियम के साथ),कवि नरेंद्र जी के द्वारा अपनी ग़ज़ल प्रस्तुति एवम् बॉलीवुड सामूहिक नृत्य शामिल थे।दो तिहाई कार्यक्रम १५ साल से कम उम्र के बच्चों ने प्रस्तुत किया था एवम् दर्शकों ने उनको बहुत ही ज़्यादा पसंद किया और तालियों की गड़गड़ाहट से उनका मनोबल भी बढ़ाया। दर्शकों के बीच बैठे हुए “चतुरनाथ” फ़िल्म के अभिनेता श्रीमान प्रमोद चखानी जी ने मंच के पास आकर एक कविता सुनाने का आग्रह किया एवम् समारोह संयोजिका, श्रीमती द्विवेदी जी ने उनको मंच साझा करने का अवसर भी प्रदान किया। श्रीमान प्रमोद चखानी जी ने, उड़ जा रही है तो क्या, दिल को जवाँ रखिए…., कविता सुनाकर लोगों को आनन्दित किया। इस प्रकार ९० मिनट के सांस्कृतिक कार्यक्रम को लोगों ने मंत्रमुग्ध होकर सुना, देखा एवम् तालियों की गड़गड़ाहट से कलाकारों को प्रोत्साहित किया।
कार्यक्रम के अंत में अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, उत्तरपूर्व ओहायो शाखा के सचिव, डॉ सोमनाथ राय ने सभी श्रोतागणों का उनके मूल्यवान समय के लिए और समारोह को सफल बनाने के लिए उनका आभार प्रकट किया। साथ ही सभी कलाकारों एवम् उनके परिवार वालों का, शिवा विष्णु टेम्पल एवम् अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति के कार्यकारिणी सदस्यों का, समारोह संयोजिका का, सांस्कृतिक समिति एवम् खाद्य समिति के सदस्यों का, साउंड एवम् लाइट प्रबंधन का और फोटोग्राफी के लिये श्रीमान महेश देसाई जी का भी आभार प्रकट किया।
तत्पश्चात् अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, उत्तरपूर्वी ओहियो शाखा के उपाध्यक्ष, डॉ. राकेश रंजन ने श्रोतागणों से समिति की सदस्यता लेने का अनुरोध किया एवम् कुछ लोग इसके लिये तैयार भी हो गये। बाद में नये सदस्यों के साथ सामूहिक तस्वीर भी लिये गये।
अंत में सबों ने साथ मिल कर अमेरिकन एवम् भारतीय राष्ट्रगानों का गायन किया। रात्रिभोज का अच्छा प्रबंध था और सबों ने उसका आनंद लिया।
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति -- डालस शाखा
हिंदी दिवस समारोह
अक्टूबर 6, 2024
द्वारा : अनीता सिंघल, पूर्व अध्यक्ष अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति की डालस शाखा द्वारा 6 अक्टूबर 2024 को ‘हिंदी दिवस’ का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में कई प्रमुख हस्तियों ने हिस्सा लिया, जिनमें अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति के कई पूर्व अध्यक्ष, भारत के वाणिज्य दूतावास से श्री डी. सी. मंजूनाथ और पद्मश्री से सम्मानित श्री अशोक मागो उपस्थित थे।
कार्यक्रम के दौरान हिंदी भाषा के सम्मान में विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ की गईं। इसमें हास्य कवि अभिनव शुक्ला की प्रस्तुति,गयाना के हिंदी भजन गायक, बच्चों की विशेष प्रस्तुति, और श्रीमती वीना शर्मा (डालस चैप्टर की वर्तमान अध्यक्ष) द्वारा उनकी बेटी के साथ हास्य नाटक शामिल था।
कार्यक्रम में शामिल सभी अतिथियों और कलाकारों ने बहुत आनंद लिया और आपसी जुड़ाव को मज़बूत किया। यह कार्यक्रम बेहद सफल रहा।
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हिंदी के प्रति जागरूकता: हिन्दी दिवस हिंदी क्लब ऑफ इलिनॉइज द्वारा
डॉ. राकेश कुमार, इलिनॉइज का दृष्टिकोण
सितम्बर 14. 2024
द्वारा:डॉ. राकेश कुमार, अ. हि. स. इंडियाना शाखा के पूर्व अध्यक्ष
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21 सितंबर, 2024 को, हिन्दी क्लब ऑफ इलिनॉइज ने ‘हिन्दी दिवस’ के अवसर पर एक जीवंत ऑनलाइन समारोह का आयोजन किया, जिसमें डॉ. राकेश कुमार मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए, साथ ही अन्य प्रमुख वक्ता भी थे। भारत में भ्रमण के दौरान, एक एयरपोर्ट लाउंज से ऑन लाइन जुड़ने के बावजूद, डॉ. कुमार ने हिन्दी की स्थिति के बारे में अपने विचारों से दर्शकों को मोहित कर दिया।
उन्होंने भाषा की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और समुदायों को जोड़ने में इसकी भूमिका पर जोर दिया। डॉ. कुमार ने विदेशों में हिन्दी के सामने आने वाली चुनौतियों का उल्लेख किया, जिसमें सीमित संसाधन और संपर्क शामिल हैं, साथ ही तकनीक और सोशल मीडिया के माध्यम से इसके विकास के अवसरों को भी उजागर किया।
हिन्दी क्लब द्वारा हिन्दी की वर्तमान स्थिति और भविष्य के बारे में प्रश्न के उत्तर में, डॉ. कुमार ने भारत और अन्य देशों में हिन्दी की स्थिति पर चर्चा की। उन्होंने भारत सरकार के हिन्दी शिक्षा को बढ़ावा देने के प्रयासों और रोजमर्रा की जिंदगी में इसके उपयोग, साथ ही विदेशों में बॉलीवुड के प्रभाव का उल्लेख किया। उन्होंने स्कूलों और घरों में हिन्दी को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया।
डॉ. कुमार ने अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति और भाषा के प्रचार के लिए समर्पित अन्य संगठनों के कार्य की प्रशंसा की। उन्होंने हिन्दी की आर्थिक प्रासंगिकता पर अपने विचार साझा किए, जो इंडियाना शाखा के 75वें हिन्दी दिवस समारोह में गूंज उठे। उन्होंने युवा पीढ़ी को आकर्षित करने के लिए हिन्दी को आर्थिक लाभों से जोड़ने का सुझाव दिया।
इसके अतिरिक्त, डॉ. कुमार ने हिन्दी कवि सम्मेलन के आकर्षण पर चिंता व्यक्त की, जो एक उम्रदराज दर्शकों को आकर्षित करता है, लेकिन 30 वर्ष से कम आयु वर्ग के लोगों में रुचि पैदा नहीं करता। उन्होंने हिन्दी को अधिक सुलभ बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया, सरल शब्दों का उपयोग करने की सिफारिश की, क्योंकि हिन्दी सदियों से एक अनुकूलक भाषा रही है।
अंत में, उन्होंने प्रतिभागियों को मध्य विद्यालय और उच्च विद्यालयों में हिन्दी को वैकल्पिक विषय के रूप में प्रचारित करने के लिए स्कूल अधिकारियों के साथ सहयोग करने के लिए प्रेरित किया, और माता-पिता से अनुरोध किया कि वे अपने बच्चों को दूसरी भाषा के रूप में हिन्दी सीखने में समर्थन करें।डॉ. राकेश वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति-इंडियाना शाखा के सलाहकार और पूर्व अध्यक्ष हैं।
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति आउटरीच -- नार्थ कैरोलीना, शार्लोट
हिंदी दिवस पिकनिक कार्यक्रम, सितंबर 21, 2024
द्वारा: प्रिया भारद्वाज, नॉर्थ - कैरोलीना (शार्लोट)
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के आउटरीच राज्य नार्थ कैरोलीना के शार्लोट शहर में 21 सितंबर, 2024 को पार्क में ’हिंदी दिवस’ पिकनिक का आयोजन किया गया। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति को प्रोत्साहित करना था। इस पिकनिक में विभिन्न आयु वर्ग के लोगों ने परिवार सहित बड़े उत्साह के साथ भाग लिया।
कार्यक्रम की शुरुआत बच्चों और बड़ों के लिए मनोरंजक गतिविधियों के साथ हुई। सबसे पहले म्यूजिकल चेयर खेल का आयोजन किया गया, जिसमें हिंदी सिनेमा जगत के सुमधुर गानों के साथ बच्चों और वयस्कों ने खूब आनंद उठाया। बच्चों को हिंदी के सुंदर और लोकप्रिय गानों पर चलने वाले इस खेल में खूब मज़ा आया।
इसके बाद हिंदी पहेलियों और चुटकुलों का कार्यक्रम हुआ, जिसमें बच्चों और वयस्कों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। बच्चों की उत्सुकता और उनके पहेलियों के सही उत्तर देने की क्षमता देखकर सभी उपस्थित लोगों का मन प्रफुल्लित हो गया। इस दौरान बच्चों को पहेली के सही उत्तरों पर उपहार भी दिए गए, जिससे उनका उत्साह और बढ़ गया।
बच्चों के लिए बॉल पासिंग खेल का आयोजन भी किया गया, जिसे सभी बच्चों ने उत्साहपूर्वक खेला। इन खेलों के साथ-साथ कार्यक्रम के दौरान अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति द्वारा हिंदी ऑनलाइन प्रोग्राम की जानकारी भी दी गई, जिससे बच्चों और उनके अभिभावकों को हिंदी भाषा सीखने के नए अवसरों की जानकारी मिली।
कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया और विशेष रूप से बच्चों को उनके उत्साह और हिंदी भाषा के प्रति उनकी रुचि के लिए सराहा गया। इस पिकनिक के माध्यम से बच्चों और बड़ों ने हिंदी भाषा के प्रति अपना प्रेम और जुड़ाव दिखाया।
निष्कर्ष यह है कि यह पिकनिक अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के उद्देश्य को सफलतापूर्वक पूरा करने में सहायक रही। इस आयोजन ने न केवल हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति को बढ़ावा दिया, बल्कि बच्चों और युवाओं के बीच हिंदी के प्रति लगाव को भी प्रोत्साहित किया। सभी परिवारों ने इस कार्यक्रम का भरपूर आनंद लिया और भविष्य में ऐसे और भी कार्यक्रमों की उम्मीद जताई।
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति - उत्तर पूर्व ओहायो शाखा
की इंडिया फेस्ट यूएसए में भागीदारी
14 सितम्बर, 2024 क्लीवलैंड ऑहियो
द्वारा — डॉ. सोमनाथ रॉय, शाखा सचिव, उत्तर पूर्व ओहायो
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के उत्तर पूर्व ओहायो शाखा की कार्यकारिणी समिति और स्वयंसेवकों ने 14 सितंबर, 2024 को क्लीवलैंड शहर में आयोजित ‘इंडिया फेस्ट USA’ में भाग लिया। इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के उत्तर पूर्व ओहायो शाखा ने एक बूथ लगाया, जिसका मुख्य उद्देश्य हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति के प्रति हमारे लक्ष्य और समुदाय में किए जा रहे कार्यों के बारे में जानकारी फैलाना था। लगभग 10 से 12 स्वयंसेवकों ने इस बूथ पर अपने समय का योगदान दिया।
विभिन्न समुदाय से ५०-६० लोग इस बूथ पर आए और अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति तथा स्थानीय शाखा की हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति के प्रति भूमिका के बारे में जानकारी प्राप्त की। इस आयोजन में शाखा का प्रयास बहुत सफल रहा।
इंडिया फेस्टिवल यूएसए एक वार्षिक आयोजन है, जो एक दिन के कार्यक्रम के माध्यम से संस्कृतियों, पीढ़ियों और समुदायों के बीच सेतु बनाने का प्रयास करता है। यह वह दिन होता है जब आगंतुकों को दो महान देशों – भारत और अमेरिका – की समृद्ध संस्कृति और विविधता का विषयगत प्रदर्शन (thematic display) देखने और उसमें भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इंडिया फेस्टिवल यूएसए एक ऐसा मंच प्रदान करता है जो इतिहास के बारे में लोगों को जानकारी देता है, मिलजुल कर रहने की प्रथा को जागरूक करता है और समुदायों का उत्सव मनाता है।
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के उत्तर पूर्व ओहायो शाखा की इस पहल से हिंदी और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में एक महत्वपूर्ण योगदान हुआ।
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अपनी कलम से
"कैसे कहूँ कि मैंने गांधी को नहीं देखा"
द्वारा: श्री रमेश जोशी, अ. हि. स. की त्रैमासिक पत्रिका
'विश्वा' के प्रधान सम्पादक
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श्री रमेश जोशी जी २००२ से भारत सरकार के केन्द्रीय विद्यालय संगठन से सेवानिवृत हैं। विगत २०-२१ वर्षों से अमरीका आते रहे हैं। तभी से उनका परिचय अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए. के पदाधिकारियों से हुआ। पिछले ग्यारह वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए. की त्रैमासिक पत्रिका 'विश्वा' के प्रधान सम्पादक हैं। इनके कार्यभार सँभालने के बाद से विश्वा का प्रकाशन लगातार यथासमय हो रहा है। किशोरावस्था से ही लेखन शुरू हुआ जो आज भी अनवरत जारी है। व्यंग्य विधा में २०-२५ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सत्र २०२२-२३ के लिए अ.हि.स. के निदेशक मंडल के सदस्य हैं।
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मैंने गांधी को नहीं देखा। देखता भी कहाँ से। न गांधी शेखावाटी के मेरे कस्बे चिड़ावा आए और न मेरा अपने गाँव से 15 किलोमीटर दूर अपने ननिहाल के अलावा कहीं प्रवास हुआ। पिताजी जरूर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान कोलकाता में रहा करते थे। बाद में वे स्थायीरूप से गाँव आ गए। 15 अगस्त 1947 को जब सदैव की तरह स्कूल गए तो हैडमास्टर जी ने अपने ही जुगाड़ से झण्डा बनाकर कर फहराया, कुछ गवाया, भाषण दिया और जैसा जो उपलब्ध हुआ लड्डू, बताशे, गुड़, मिश्री बाँटे गए। बताया गया कि देश आजाद हो गया है और इसी तरह हर साल इस दिन कुछ मीठा-चीठा मिला करेगा और छुट्टी भी हुआ करेगी। इसके बाद बाजार से होते हुए घर लौट रहे थे तो वहाँ भी वैसा ही हाल; खुशियाँ और मिठाईयाँ। मगर गाँधी का कहीं नाम नहीं।
गाँधी का नाम पहली बार तब सुना जब हम अपने गाँव में किसी बड़े सेठ जी के बेटे की शादी में जीम रहे थे। रात का समय, अच्छी सर्दी थी। बाहर वाले चौक में शामियाना लगा था। पेट्रोमेक्स जल रहे थे। पहली पंगत बच्चों की थी। तभी सारी खुशियों पर पानी फिर गया। सुना, लोग कह रहे थे- बच्चों को जल्दी से खाना खिलाकर काम निबटाओ। न्यौते वालों के घर परोसा भिजवा दिया जाएगा। पता चला, दिल्ली में किसी ने गाँधी जी की हत्या कर दी है। पहली बार गाँधी का नाम सुना। पता नहीं कौन था लेकिन इतना तो तय था कि है कोई खास जिसके दिल्ली में मारे जाने पर यहाँ सौ कोस दूर हमारे गाँव की शादी में मातम छा गया।
इसके बाद तो किताबों में पढ़ने लगे कि बिरला भवन में प्रार्थना सभा में आते समय किसी ‘पागल’ ने गोली मारकर उसकी हत्या कर दी। जरूर पागल ही रहा होगा जो किसी की हत्या करे। फिर फिल्मों में भी देखा कि जो लोग पागल नहीं होते वे भी किसी की हत्या की सुपारी लेकर अभियान पर जाने से पहले पागल होने के लिए खूब शराब पीते हैं। बाद में पता चला कि उस हत्यारे का नाम नाथूराम गोडसे था, वह पागल नहीं था और उसने बहुत सोच-समझकर, विशिष्ट स्तर पर संगठित योजना बनाकर गाँधी की हत्या की थी। सामान्य जीवन बिना किसी बड़ी योजना के ही चलते हैं। हाँ, षड्यंत्रों के लिए जरूर बहुत मेहनत और सावधानी से योजना बनानी पड़ती है। नाम में ‘राम’ और ‘गॉड’ दोनों और योजना भी बनाई तो हत्या की और वह भी प्रार्थना सभा में जाते एक बूढ़े और निहत्थे आदमी की। बात भी तो कर सकता था !
पिताजी भी अक्सर इस बात की बहुत चर्चा किया करते थे। चाचाजी ऐसे ही गोडसे टाइप राष्ट्रवादी विचारधारा के हुआ करते थे लेकिन इस घटना के बाद जीवन भर पछताते रहे। गाँधी ने केवल भारत से अंग्रेजों का कब्जा हटाने भर का ही आंदोलन नहीं किया था बल्कि वे मनुष्य के दिमागों पर कब्जा जमाए और भी बहुत से फिरंगियों को हटाना चाहते थे इसलिए शिक्षा, चिकित्सा, उद्योग, समाज-सुधार के कई कार्यक्रम साथ साथ चल रहे थे। शिक्षा में उनकी ‘बेसिक शिक्षा’ आई। उसीमें ‘उद्योग’ विषय में तकली कतवाई जाती थी। आगे चलकर प्राथमिक शिक्षा के लिए बेसिक शिक्षा पर आधारित शिक्षक प्रशिक्षण की योजना बनी जिसे संक्षेप में बी एस टी सी कहा जाता था। 1960 में 18 वर्ष की आयु में इंटर करते ही सरकार की तरफ से 20 रुपया महीने के भत्ते पर यह ट्रेनिंग करने का प्रस्ताव मिला। वहाँ गाँधी का शिक्षा दर्शन पढ़ा लेकिन जहाँ आदमी बूढ़ा होने तक आत्मप्रदर्शन से मुक्त नहीं हो पाता वहाँ 18 वर्ष की किशोर वय में गाँधी दर्शन कहाँ समझ में आता ?
इसके बाद ऐसे ही मास्टरी करते, स्वयंपाठी के रूप में बी ए, एम ए करते 1970 आ गया। अपने ही जिले में एक सेठजी ने अपनी पत्नी के नाम पर एक डिग्री कॉलेज बनवाया। शुरू में प्रथम वर्ष की एक कक्षा ही खुली। सभी विषयों के लिए एक एक युवा जुट गए और कॉलेज शुरू हो गया। इसी दौरान पता चला कि बच्चों के लिए कोई अच्छा स्कूल नहीं है तो कुछ और सोचना शुरू किया। इसी प्रक्रिया में पता चला कि पोरबंदर गुजरात में बिरला जी का सी बी एस ई का एक अंग्रेजी माध्यम का स्कूल है और वहाँ हिन्दी के एक वरिष्ठ अध्यापक की आवश्यकता है। एक पोस्टकार्ड लिख दिया और बुलावा भी आ गया। दोनों तरफ का किराया। जून का महीना शेखावाटी की गरमी से सीधे अरबसागर के तट पर बसा बिरलसागर स्कूल, शीतल-मंद-समीर। सोचा एकसौ रुपया कम भी देंगे तो रहने में कोई बुराई नहीं है। खैर, ऐसा नहीं हुआ। साक्षात्कार के बाद पहला काम मन में था गाँधी का जन्म स्थान देखना।
सीधे सुदामा चौक की बस पकड़ी और पहुँच गए ‘माणक चौक’। उससे थोड़ा पहले दाईं तरफ गली में गाँधी का घर। द्वार अलग से बनाया हुआ सामान्य से ऊँचा। घुसते ही बाईं तरफ एक छोटा सा कमरा, लकड़ी का दरवाजा जिसके ऊपर आधे भाग में सरिये, हरे रंग से रँगे हुए।एक सामान्य सा कमरा-घर, कोई तामझाम नहीं।
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कमरे में एक तरफ हाथ से चलाने वाली चक्की, सामान्य से नीची छत, सीलन सी लगी। लगा कोई मुझे देख रहा है। अचानक दाईं दीवार की तरफ निगाह गई तो देखा गाँधी की चरखा कातती आदम कद पेंटिंग। हालाँकि गाँधी चरखा कातने में ध्यानस्थ थे लेकिन उनकी उपस्थिति अनुभव हो रही थी। अनुभव हुआ कि तकली कातते हुए बचपन में शायद हम बच्चे भी इतने ही ध्यानस्थ हो जाया करते थे।
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हो सकता है गाँधी भी अपने आप में होने के लिए ही चरखा चलाते हों। लोग तो समय मिलते ही आज भी उस बूढ़े की निंदा करते हैं। चरखा चलाना उससे तो हजार गुणा बेहतर है।
इसके बाद तो जून 1975 में राजकोट जाने से पहले तक हर रविवार को जब हफ्ते भर कीसब्जियाँ तथा अन्य खरीददारी करने के लिए बिरलासागर से शहर जाना होता तो 10-15 मिनट के लिए गाँधी जी के जन्म वाले घर-कमरे में जरूर जाना होता था। एक नियम और आदत बन गया गाँधी के घर जाना।
इसके अतिरिक्त जब भी छुट्टियों में पोरबंदर/राजकोट से गाँव आता तो आते या वापिस जाते एक बार जरूर साबरमती आश्रम जाना भी एक नियम बन गया जो फरवरी 1977 तक चलता रहा। वास्तव में वहाँ घंटे दो घंटे बैठकर लगता था कि क्यों कभी कभी राजा भी अपनी सेना, मुकुट, अस्त्र-शस्त्र, जूते उतारकर आश्रमों में जाते थे। आज उस आश्रम के पाँच सितारा विकास की कल्पना करके भी डर लगता है और फिर जाने की हिम्मत नहीं होती।
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राजकोट में भी शहर से दूर यूनिवर्सिटी रोड पर रहते हुए हफ्ते में कम से कम एक बार तो शहर जाना होता ही था। ऐसे में जुबली बाग के अल्फ्रेड स्कूल में जाने का भी आकर्षण हुआ करता था जहाँ अध्यापक के कहने पर भी बालक गाँधी ने केतली के अंग्रेजी शब्द की स्पेलिंग न सुधारने की
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नैतिकता दिखाई। उसी गुजरात में जहाँ के एक-दो स्कूलों के नाम नीट परीक्षा की नकल के मामले में कुख्यात हुए।
दिसंबर 2002 में भी गया था पोरबंदर लेकिन न तो गाँधी के जन्म स्थान जा पाया और न ही साबरमती आश्रम। लगा, गाँधी को क्या मुँह दिखाऊँगा ?
आचरण के बारे में तो आज भी गारंटी के साथ नहीं कह सकता कि गाँधी को जीवन में उतार लिया है लेकिन इतना तो कह सकता हूँ कि मैंने गाँधी को कुछ कुछ जाना भी है और देखा भी है।
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अपनी कलम से
"दीपावली"
द्वारा : प्रिया भरद्वाज, शॉर्लट, नॉर्थ केरोलाइना
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दीपावली कार्तिक माह की अमावस्या को प्रति वर्ष मनाया जाने वाला सबसे लोकप्रिय पौराणिक सनातन उत्सव है। दीपावली शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है ('दीप+पंक्ति')पंक्ति मे रखे हुए दीपक।दीवाली के ही दिन भगवान श्रीराम 14 वर्षो के वनवास के बाद अपनी पावन पुण्य जन्मभूमि अयोध्या लौटे थे और उन्ही के स्वागत में अयोध्यावासियों ने असंख्य दीपक जला कर पूरी अयोध्या को रौशन कर दिया था।
यह त्रेतायुग की घटना है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम अपने परमपूज्य पिता महाराज दशरथ और माता कैकयी के आदेश पर तपस्वी वेष मे चौदह वर्ष के लिए वनवास गए थे।गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने महाकाव्य रामचरित मानस अर्थात रामायण मे लिखा है, तापस वेश बिसेषि उदासी,चौदह बरिस रामु वनवासी।
भगवान राम ने अपने चौदह वर्ष के वनवास मे अनेक राक्षसों का वध किया और त्रेतायुग के सबसे शक्तिशाली राक्षस रावण का वध करके धरती को राक्षस विहीन कर नागरिको को राक्षसों के अत्याचारों से मुक्त किया।
दीवाली की शुरूवात धनतेरस के दिन से मानी जाती है, इस दिन चिकित्सक भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे।इस दिन लोग सोना, चाँदी के सिक्के, बर्तन, आभूषण आदि खरीदते हैं।
अगले दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को 'नरक चतुर्दशी 'या 'रूप चतुर्दशी 'भी कहते हैं। इसी दिन भगवान ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था।
तीसरे दिन कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है। इसी दिन महालक्ष्मी की पूजा करते हैं ।शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी गणेश का सिक्का, तस्वीर,श्री यंत्र,धानी बताशे, गन्ना,कमल पुष्प,या गेंदे के पुष्प, फलों आदि से लक्ष्मी गणेश का पूजन किया जाता है। लक्ष्मी के नैवेद्य हेतु घरों में पकवान बनाए जाते हैं। शुभ मुहूर्त या गोधूलि बेला में या सिंह लग्न में लक्ष्मी का वैदिक या पौराणिक मंत्रो से पूजन किया जाता है। स्वास्तिक बनाकर, दीपों को देवस्थान, तुलसी,आँगन, घर के अंदर बाहर दीप प्रज्ज्वलित करके लक्ष्मी जी को प्रसन्न करना चाहिए।
इस दिन बच्चे बड़े सभी आतिशबाजी करते हैं। सभी लोग एक दूसरे को उपहार मिठाई बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं।
अमावस्या की रात होने के बाद भी पूरा देश रोशनी से जगमगा उठता है।जैन धर्म के लोग दीपावली इसलिए मनाते हैं क्योंकि चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। संयोगवश इसी दिन उनके शिष्य गौतम कोज्ञान प्राप्त हुआ था। सिख धर्म में भी इस त्यौहार को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन अमृतसर में १५७७ में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था।आर्य समाज के संस्थापक दयानंद स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा या अन्नकूट महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गाय, बछड़े ,बैलों की पूजा करते हैं। उन्हें रंग कर सजाते हैं, और उनका श्रृंगार करते हैं।इस दिन गोवर्धन सहित श्री कृष्ण भगवान की पूजा करते हैं।
पाँचवें दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भाई दूज भी कहते हैं।इस दिन बहनें भाई का तिलक कर उनकी दीर्घायु की प्रार्थना करतीं हैं। यह त्यौहार सभी धर्मों के लोग मिलकर मनाते हैं। सामाजिक महत्व के साथ -साथ आर्थिक रूप से भी यह त्यौहार बहुत महत्वपूर्ण है। इस त्यौहार में लोग बर्तन, कपड़े, आभूषण,राशन, मिठाई, मिट्टी के दिये, सजावट का सामन, मोमबत्तियाँ, रंगोली, पूजन सामग्री,बिजली की सजावटी लड़ियाँ, पूजन हेतु विभिन्न पुष्प,चावल की लाई (मुरमुरे) बताशे और अनेक प्रकार केमेवे आदि खरीदते हैं।इस दिन खरीदारी करने से किसी चीज की कमी नहीं होती,लोग इस त्यौहार में बढ़-चढ़ कर खरीदारी करते हैं ,व्यापारियों की इस त्यौहार में जमकर कमाई होती है। कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिलता है।
इस त्यौहार में साफ़ सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है, घरों में साफ़ सफाई, रंग रोगन किया जाता है। जिससे वातावरण कीटाणु रहित और शुद्ध हो जाता है।दिवाली के दिन घर जगमगा उठते हैं।बच्चे,बड़े पूजा के बाद जमकर आतिशबाजी का आनंद लेते हैं।
विदेशों में दीपावली को कुछ अलग ही अंदाज़ में मनाया जाता है। भारत के अलावा श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, नीदरलैंड्स, कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिजी, मॉरीशस, केन्या, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो में दीपावली मनाई जाती है। अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व दीपावली की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ . दीप की रोशनी से आपके जीवन का अन्धकार हमेशा के लिए दूर हो जाए और आशा करती हूँ , कि आप जो भी चाहें वो सभी मनोकामनाएँ आपकी पूर्ण हों जाए ।दिए का प्रकाश हर पल आपके जीवन को एक नयी रोशनी दे। रोशनी का यह पावन त्यौहार आपके जीवन में सुख शांति एवं समृद्धि लेकर आए । यह पर्व अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से मशहूर है, इन्हें मनाने के पीछे कुछ मान्यताएं भी प्रचलित हैं।
भारत के अलावा दीपावाली का पर्व अमेरिका में मनाया जाता है । अमेरिका में बहुत ही खूबसूरती से दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है। समुदाय के सभी लोग दीपावली को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं और इनके साथ दूसरे धर्म के लोग भी एक दूसरे के साथ ख़ुशियाँ और उपहार बाँटते हैं और साथ ही नृत्य और गायन का आनंद भी लेते है .और लोग दिवाली पर दीप जलाने के साथ आतिशबाजी का आनंद लेते हैं। दीपावाली के दिन लोग अनुमति लेकर पार्कों में और ग्रुप में इकट्ठा होकर पटाखे छोड़ते हैं। इसके अलावा अमेरिका में लोग इस दौरान मिठाई और उपहार भी अपने रिश्तेदारों और दोस्तों में बाँटते हैं।
इसके साथ ही वैश्विक महाशक्ति अमेरिका में भी दीपावाली पर राष्ट्रीय अवकाश हुआ करेगा। यूएस कांग्रेस में "दीवाली-डे बिल" पेश किया गया है, जिसे न्यूयॉर्क की सांसद कैरोलिन मैलोनी प्रतिनिधि सभा में लाईं। कैरोलिन मैलोनी ने कहा कि, मैं बिल (विधेयक) पेश करते हुए बहुत खुश और उत्साहित हूँ। दीपावाली प्रकाश का पर्व है। मैं मानती हूँ कि, अमेरिका में भी इस दिन संघीय अवकाश होना चाहिए। यहाँ काफी समय से इसे संघीय अवकाश घोषित करने की माँग उठ रही है।
ऐतिहासिक विधेयक को लेकर भारतीय-अमेरिकी कांग्रेस के राजा कृष्णमूर्ति सहित कई सांसदों द्वारा मांग की गई थी। कृष्णमूर्ति ने अमेरिकी कांग्रेस में दिवाली के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को मान्यता देते हुए एक प्रस्ताव भी पेश किया। वहीं, कैरोलिन ने कहा कि, दिवाली देश को कोरोना महामारी के अंधेरे से निकालने की हमारी निरंतर यात्रा का प्रतीक है। उन्होंने कहा, 'मुझे आपके साथ अंधकार पर प्रकाश की जीत, बुराई पर अच्छाई की जीत और अज्ञानता पर ज्ञान की खोज का जश्न मनाते हुए बहुत गर्व हो रहा है जैसा कि हम हर दिन करते है।
भारत के अलावा दीपावाली का सबसे बड़ा पर्व ब्रिटेन में मनाया जाता है । ब्रिटेन के शहर लेस्टर में बहुत ही खूबसूरती से दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है। समुदाय के सभी लोग दीपावली को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं और इनके साथ दूसरे धर्म के लोग भी एक दूसरे के साथ ख़ुशियाँ और उपहार बाँटते हैं। लोग दिवाली पर दीप जलाने और आतिशबाजी का आनंद लेते हैं। दीपावाली के दिन लोग पार्कों में और स्ट्रीट पर ग्रुप में इकट्ठा होकर पटाखे छोड़ते हैं। इसके अलावा ब्रिटेन के लोग इस दौरान मिठाई भी अपने रिश्तेदारों और दोस्तों में बाँटते हैं। भारत के जैसा ही उत्साह और प्रकाश दीपावाली पर लंदन में देखने को मिलता है। पूरे लंदन को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। दीपावाली पर लंदन शहर को सजा हुआ देखकर हर भारतीय को स्वयं पर गर्व महसूस होता है। थाइलैंड में दीपावाली को लाम क्रियोंघ के नाम से मनाया जाता है। केले की पत्तियों से बने दीपक और धूप को रात में जलाया जाता है। उसके साथ पैसा भी रखा जाता है। जलते हुए इस दीप को नदी के पानी में बहा देते हैं ,और अपनी मनोकामनाएँ माँगी जाती हैं। अंग्रेज एवं आयरिश लोग अच्छी जिंदगी की तलाश में इधर भटके थे और वही आज कनाडा कहलाता है। बोनफायर में लोग मकान की खिड़कियाँ भी रंगते हैं।
नेपाल में दीपावली को 'स्वान्ति' कहा जाता है। यह पांच दिन का पर्व होता है, जिसमें पहले दिन कौवे, दूसरे दिन कुत्ते को भोजन कराते हैं। तीसरे दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लक्ष्मी पूजन के दिन यानी स्वान्ति से नेपाल संवत की शुरुआत होती है। चौथा दिन नए साल की तरह मनाया जाता है। इस दिन महापूजा होती है। फिर पांचवे दिन भाई टीका होता है, जो भारत के भाई दूज पर्व की तरह मनाया जाता है ।
श्रीलंका के राजा रावण का वध करके जब 14 साल के वनवास के बाद प्रभु श्री राम अयोध्या पहुंचे तो प्रजा ने दीपों से राज्य को जगमगा दिया गया। लोगों ने उत्सव मनाया। इसी मान्यता के आधार पर दीपावली का पर्व वर्षों से मनाया जा रहा है। श्रीलंका में भी दिवाली मनाई जाती है। तमिल समुदाय के लोग दिवाली के दिन तेल स्नान करके नए कपड़े पहनते हैं और पोसई यानी पूजा करते हैं। बड़ों का आशीर्वाद लेने के बाद शाम में पटाखे जलाते हैं। मलेशिया की दीपावाली भी मशहूर है। मलेशिया में हिंदू सूर्य कैलेंडर के सातवें महीने में दिवाली मनाई जाती है। हिंदू धर्म के लोग इस दिन मंदिर जाते हैं और उत्सव का आयोजन किया जाता है । सिंगापुर में दीपावाली के मौके पर सरकारी अवकाश रहता है , और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। दीपावली में ज्यादा खरीदारी होने से छोटे बड़े व्यापारियों की अच्छी कमाई होती है जो कि देश की अर्थव्यस्था के लिए अच्छा है। हमे स्वदेश में निर्मित पटाखे, कपड़े, सजावटी लाईट लेना चाहिए l
ज्यादा आवाज़ वाले पटाखे ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं और ज्यादा धुआं फैलाने वाले पटाखे हवा को प्रदूषित कर देते हैं जो कि अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं। सबके साथ में मिलकर बारी बारी से पटाखे चलाने से कम पटाखे उपयोग होंगे। हवा को ज्यादा प्रदूषित करने वाले पटाखों को चलाने से बचना चाहिए। यह त्यौहार न सिर्फ हमें अंधकार से प्रकाश की ओर जाना सिखाता है बल्कि हमें जीवन में आशावादी दृष्टिकोण अपनाना भी सिखाता है साथ ही अपने आप को खुश रखना भी सिखाता है।
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"एक अप्रत्याशित सत्य घटना"
द्वारा: अलका खंडेलवाल, उत्तर पूर्व ओहायो शाखा
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अलका खंडेलवाल एक्रन, ओहायो में रहती हैं । अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति से कई वर्षों से जुड़ी हैं । आने वाली पीढ़ियों को हिन्दी से जोड़ना तथा हिन्दी जानने वालों को हिन्दी से जोड़े रखना इनका उद्देश्य है और ख़ुशी से हिन्दी को संरक्षित करने और बढ़ावा देने में अपना योगदान दे रही हैं। पिछले वर्षों में समिति के लिए कई पदों पर कार्य किया है।
कोषाध्यक्ष- अ.हि.स.उ.पू. ओहायो शाखा, 2020-21,कोषाध्यक्ष- समिति का 20 वाँ अधिवेशन, 2021,प्रूफ रीडर- ‘विश्वा’, 2019-2021,प्रूफ रीडर- ‘ई-पत्र’, 2022-2024
स्टारटॉक ग्रीष्म कालीन हिंदी समर कैंप की शिक्षिका, 2013-2018,ग्रीष्म कालीन हिंदी समर कैंप की शिक्षिका, 2019-2024.
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यात्रा करना हम सभी के जीवन का हिस्सा है। कभी हवाई जहाज से, कभी ट्रेन से और कभी गाड़ी के द्वारा।सभी साधनों के अपने फायदे और नुक्सान हैं, साथ ही मजे और तकलीफें भी हैं। हम सभी के समय समय पर यात्रा सम्बन्धी कुछ खट्टे और कुछ मीठे अनुभव रहे होंगे। मैं आज आपसे हमारे परिचित के साथ हुई एक घटना साझा करने जा रही हूँ। यह घटना हम सबके लिए एक मजेदार घटना हो सकती है पर जो इस परिस्थिति में थे उनकी आप बीती जब इस कहानी के माध्यम से जानेंगे तब यही कहेंगे कि, हम कभी ऐसे न फँसे। सभी हवाई यात्रा करते हैं और यदा कदा व्हीलचेयर का उपयोग भी करते हैं। पर इस वजह से मसालेदार यात्रा का होना एक असामान्य घटना है।
हमारे परिचित अपनी पत्नी के साथ सैन फ्रांसिस्को से हीथ्रो, लंदन होते हुए भारत लौट रहे थे । उन्होंने अपने और अपनी पत्नी के लिए व्हीलचेयर सुविधा के लिए अनुरोध किया था। हीथ्रो हवाई अड्डे पर उनके पास २ घंटे का समय था। लंदन हवाई अड्डे पर उतरने के बाद व्हीलचेयर के लिए उन्हें आधे घंटे तक कतार में लगना पड़ा। प्रतीक्षारत यात्री बहुत अधिक थे और उनके पास व्हीलचेयर बहुत कम थीं, जिसकी वजह से व्हील चेयर वालों को चक्कर लगाने पड़ रहे थे। एक व्हीलचेयर अटेंडेंट उन्हें उनकी बारी पर प्री-सिक्योरिटी कियोस्क पर ले गया और कहा कि वह जल्द ही आयेगा और उन्हें आगे ले जाएगा, उनके लंदन से दिल्ली तक के बोर्डिंग पास भी उसने अपने पास ही रख लिए थे।
हीथ्रो हवाई अड्डे पर एक डरावनी कहानी उनका इंतजार कर रही थी। वह व्हीलचेयर वाला व्यक्ति जिसने उन्हें प्री-सिक्योरिटी कियोस्क पर छोड़ा था कभी वापस नहीं आया और वे चिंतित हो उसका इंतजार करते रहे। समय बीतता जा रहा था और वे लगभग एक घंटे तक प्री-सिक्योरिटी कियोस्क पर फँसे रहे। अगली फ्लाइट का समय भी होता जा रहा था। डिस्प्ले बोर्ड पर उनकी उड़ान का बोर्डिंग टाइम नजदीक दिखा रहा था। कनेक्टिंग फ्लाइट छूट न जाए, इस सोच से चिंतित थे। अचानक उन्हें अपने बेटे द्वारा दिए वेब चेक इन बोर्डिंग पासों का ख्याल आया और उन्होंने उसके प्रिंट आउट अपने बैग से निकाले। ऐसे भयानक संकट और विषम परिस्थिति में ये उनके लिए सबसे बड़ी मदद थी।
उन्होंने सुरक्षा जाँच के जाने के लिए अपने प्रिंटआउट दिखाए। सुरक्षा गेट पर महिला प्रभारी ने कहा कि इन बोर्डिंग पासों की पहले ही जाँच की जा चुकी है। उनके पासपोर्ट देखने के बाद, आश्चर्यचकित होकर, उसने उन्हें सुरक्षा जाँच के साथ आगे बढ़ने की अनुमति दे दी। हमेशा की तरह सुरक्षा बहुत सख्त थी। सुरक्षा के बाद बग्गी उन्हें बोर्डिंग काउंटर पर ले गई, जहाँ एक बार फिर अटेंडेंट महिला पूरी तरह से चकित हो गई कि वे चेक इन क्यों कर रहे हैं? पूछा कि क्या उन्होंने पहले चेक इन नहीं किया है? उन्होंने कहा कि उनके मूल बोर्डिंग पास अभी भी व्हील चेयर रोलिंग व्यक्ति के पास हैं, जिसने कहा था कि वह उन्हें आगे ले जाने के लिए आएगा लेकिन उसके बाद वह कभी वापस नहीं आया। उनके पासपोर्ट और अपने उपकरणों के साथ कई जाँचों के बाद, आखिरकार सुरक्षाकर्मी ने उन्हें बोर्डिंग की अनुमति दे दी।
जैसे ही वे प्लेन में चढ़े एक और अप्रत्याशित घटना उनका इंतजार कर रही थी। उनकी सीट नंबर 64बी और 64सी पर पहले से ही दो लोग बैठे थे, एक सरदारजी और एक महिला। सरदारजी ऊपर सामान रखने वाली जगह के लिए एक अन्य वरिष्ठ महिला से झगड़ रहे थे। जब वे शांत हो गए, तो इन्होने सरदार जी को सीट नंबर के साथ अपने प्रिंटआउट दिखाए और दावा किया कि वे सीटें इनकी हैं, लेकिन सरदारजी ने उन्हें समान सीट नंबर वाले बोर्डिंग पास की हार्ड कॉपी दिखाई, ये आश्चर्यचकित रह गए और इन्होंने एयरहोस्टेस अटेंडेंट से मदद करने को कहा। एयरहोस्टेस हैंडहेल्ड डिवाइस लेकर आई और सरदारजी से पूछा, क्या आप आर. के. गुप्ता हैं? उसने कहा- नहीं, मैं जरनैल सिंह हूँ और अगली सीट पर मेरी पत्नी है। एयरहोस्टेस ने पूछा क्या उसका नाम कला गुप्ता है? सरदारजी ने कहा नहीं वह हरमिंदर कौर है। अटेंडेंट ने सरदारजी से बोर्डिंग कार्ड लिया और बोर्डिंग कार्ड की हार्ड कॉपी पर आर. के. गुप्ता और कला गुप्ता नाम पढ़े। ये उनके ही बोर्डिंग पास थे जो सरदारजी ने व्हीलचेयर चलाने वाले व्यक्ति से लिए थे। दरअसल सरदारजी के अपने बोर्डिंग पास जो उनके पास ही थे, की हार्ड कॉपी निकाली। उन बोर्डिंग पासों पर अलग-अलग सीट नंबरों के साथ उनकी और उनकी पत्नी के नाम दर्ज थे, उन्हें अपनी आवंटित सीटों 45बी और सी पर स्थानांतरित होने के लिए कहा गया।
अन्य वरिष्ठ महिला भी यह देखकर खुश हुई कि सरदारजी को अपना सामान हटाना पड़ रहा है। वे अपनी सीटों पर चले गए। हमारे परिचितों को अपने सामान टैग के साथ उनके अपने बोर्डिंग पास की मूल हार्ड कॉपी मिल गई थी और वे अपनी आवंटित सीटों पर बेदाग़ बैठे गए। तो अब आप सभी समझ ही चुके होंगे कि असल में क्या हुआ होगा? व्हीलचेयर वाला व्यक्ति प्री सिक्योरिटी कियोस्क पर लौटा और अपने मूल यात्री जोकि हमारे परिचित और उनकी पत्नी थीं, की जगह सरदार जी और उनकी पत्नी को परिचितों के हार्ड बोर्डिंग पासों के साथ प्लेन पर चढ़ा दिया।
जल्द ही सरदारजी और उनकी पत्नी के नामों की घोषणा लापता यात्रियों के रूप में की गई, क्योंकि एयरलाइन्स के अनुसार उन दोनों की बोर्डिंग अभी तक नहीं हुई थी जबकि वे प्लेन के अन्दर ही थे। तो यह थी हीट थ्रो (Heathrow) की नरम गरम मसालेदार घटना।
हम सभी हवाई यात्रा की थकाऊ औपचारिकताओं से परेशान हो जाते हैं। पर कदम कदम पर हो रही औपचारिकतायें निरर्थक नहीं होती हैं, इसका जीता जागता उदाहरण यह घटना है। सुरक्षा जाँच में जाने से पहले प्री-सिक्योरिटी कियोस्क पर अधिकारी हमारे बोर्डिंग पास की पुष्टि हमरे पासपोर्ट या ड्राइविंग लाइसेंस (पर्सनल I.D.) के साथ करते हैं। यदि सरदार जी के बोर्डिंग पास की पुष्टि में चूक नहीं होती तो यह घटना भी घटित नहीं हुई होती और सभी के लिए यह सफ़र बिना किसी अड़चन सुखदायी होता। दूसरे व्हीलचेयर वाले व्यक्ति ने यदि अपना काम सावधानी पूर्वक किया होता और अपने मूल यात्री की जगह दूसरे यात्री को न ले गया होता तो भी यह घटना घटित न होती।
हम सभी को यात्रा के समय सचेत रहने और अनुभवों से सीख लेने की आवश्यकता है।
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अपनी कहानियाँ
"दिल की दुविधा"
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प्रेम बजाज एक वरिष्ठ रचनाकार है। अब तक अनेकों सम्मान पत्र, ट्रॉफीज़, एवं अवार्ड द्वारा इन्हें सम्मानित किया गया है। अनेकों पत्र-पत्रिकाओं एवं सांझा संग्रह में इनकी कहानियाँ, कविताएँ तथा आलेख छपते हैं। सुप्रसिद्ध दिल्ली पब्लिकेशन से प्रकाशित गृह शोभा, सरिता, मुक्ता, मनोहर गाँधी तथा सरस सलिल में भी इनकी कहानियाँ एवं आलेख छपते हैं।
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हरीश बजाज प्राइवेट दफ़्तर में क्लर्क बाबू की नौकरी, दो बेटे, बड़ा गौरव, छोटा सौरभ मन में चाह कि बच्चों को अपने जैसा क्लर्क नहीं बनाना, इसलिए ओवर टाइम भी करता था, पत्नी भी लोगों के कपड़े सिला करती थी, ताकि बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सके।
दोनों बेटे पढ़-लिखकर ऊँची पोस्ट पर बड़ी-बड़ी कम्पनियों में नौकरी करने लगे पिता ने रिटायर होने के बाद दोनों बेटों में सबकुछ बाँट दिया।
सुनो," सब कुछ मत बाँटो बच्चों में कुछ तो अपने लिए रखो, कल को अपने बुढ़ापे के लिए"
"तुम तो ऐसे ही चिंता करती हो बुढ़ापे के लिए बच्चे हैं ना हमें किस बात की चिंता"
शुरू में दोनों बच्चों ने खूब प्यार दिखाया फिर पुश्तैनी घर भी जब बंट गया दोनों में, माँ - बाप ने सोचा चलो अब बच्चों के साथ ही रहा जाए, कभी एक के कभी दूसरे के पास। गौरव दिल्ली , सौरभ मुम्बई हरीश ने दोनों बेटों से बात की।
गौरव,"सौरभ क्या तुम दोनों को रख सकते हो? मेरा तो मुश्किल है इतनी महँगाई उस पर से बच्चों की भी अब बड़ी क्लासे हैं उनके भी तो खर्चे हैं"
"तो भैया मेरा भी तो यही हाल है"
" तो ऐसा करते हैं एक को तुम रखो एक को मैं"
" हाँ ये ठीक रहेगा, ना आप पर ज्यादा बोझ पड़ेगा ना मुझ पर पापा को मैं रख लेता हूं आप माँ को ले जाओ"
लाचार माँ - बाप दो हिस्सों में बंट गए, कुछ समय बाद हरीश की तबीयत बहुत बिगड़ गई, डाक्टर ने बताया कुछ पता नहीं कब तक हैं ।
हरीश की इच्छा है कि अंतिम समय में वो पत्नी के साथ रहे, लेकिन दोनों को रखने के लिए कोई राज़ी नहीं।
"गौरव बेटा तेरे पापा का कुछ पता नहीं कब क्या हो जाए, हम चाहते हैं अन्तिम समय में हम साथ रहे"
"माँ आप जानते हो दो का खर्च ना मैं उठा सकता हूँ ना सौरभ और फोन पर तो रोज़ बात कर ही लेते हो। ज्यादा है तो आप मेरे फ़ोन से वीडियो काल कर लिया करो, लो मैं अभी आपकी बात कराता हूँ "
फ़ोन पर दोनों विडियो काल पर बात कर रहे हैं।
हरीश,"आशा तुम्हें देख कर बहुत मन खुश हो गया, ऐसा लग रहा है जैसे हर एक - दूजे के पास हैं"
" हम पास ही तो हैं दूर कहाँ है, ये तो सिर्फ राहों की दूरियां हैं दिलों की नहीं"
"आशा तुम्हें याद है, कभी - कभी तुम एक गीत गुनगुनाया करती थी"
" वो मैं कैसे भूल सकती हूँ अब तो हर पल वही गीत गुनगुनाती हूँ"
आज फिर से वही गीत सुनने का मन है , आज मैं भी तुम्हारे साथ गाऊँगा । दोनों गाने लगते हैं .......
तेरे बिना ज़िंदगी से शिकवा तो नहीं , शिकवा नहीं , शिकवा नहीं , तेरे बिना ज़िंदगी भी लेकिन ज़िन्दगी तो नहीं ।
गाते -गाते हरीश ख़ामोश हो गए।
"आगे तो गाईये भूल गए क्या, गौरव के पापा बोलिए ना क्या हुआ"
लेकिन वो तो खामोश हो गए सदा के लिए और इसके साथ ही आशा की आत्मा भी विलिन हो गई परमात्मा में यह देख गौरव रो रहा है। गौरव का बड़ा बेटा साहिल," पापा क्यों रो रहे हैं आप, अब तो कोई दुविधा ही नहीं रही कि दोनों को एक साथ कैसे रखें, लेकिन मेरे दिल में एक दुविधा है क्या दादू - दादी को वहाँ भी अलग -अलग रखा जाएगा या वहाँ दोनों एक साथ रह सकते हैं"
साहिल की आंखों में बहुत से सवाल नज़र आए गौरव को ,वो उसके दिल की दुविधा को मिटाने में असमर्थ था।
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अपनी कवितायेँ /गजल
"बाँट सकते हो तुम भटके इन्सान को"
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द्वारा - डॉ. रामगोपाल भारतीय
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डॉ. रामगोपाल भारतीय गज़लकार, और गीतकार हैं। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के आजीवन सदस्य भी हैं।
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बाँट सकते हो तुम भटके इन्सान को
बाँट सकते हो तुम भटके इन्सान को
बाँट सकते हो तुम गिरते ईमान को
बाँट सकता नहीं कोई जग में मगर
सच्चे इन्सान को सच्चे ईमान को।
धूल दिल पर जमी है इसे साफ कर
अपने ईमान के साथ इन्साफ कर
आस्था जो कभी डगमगाने लगे
याद कर एक बच्चे की मुस्कान को।
जैसे धरती कभी बोझ मरती नहीं
अपने बच्चों में वो भेद करती नहीं
चोट अपनों से कोई मिले तो तुझे
याद कर माँ की आँखों के अरमान को।
क्यूं समझते हो कोई सहारा नहीं
प्यार से तुमने उसको पुकारा नहीं
झोपड़ी में है वो खेत खलिहान में
ढूँढ़ लो कारखानों में भगवान को।
उम्र भर के लिए तो अंधेरा नहीं
कैद घर में किसी के सवेरा नहीं
दिन भी निकलेगा ये रात काली सही
किसने बाँधा है सूरज की पहचान को।
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति एवं सभी हिंदी प्रेमियों की ओर से
भावभीनी श्रद्धांजलि
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पद्म भूषण श्री रतन टाटा
28 दिसम्बर 1937 - 9 अक्टूबर 2024
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पद्म भूषण श्री रतन टाटा, जो इस माह हमें छोड़कर चले गए, भारतीय उद्योग जगत के महान हस्ती और समाजसेवी थे। उनका योगदान न केवल व्यवसाय के क्षेत्र में बल्कि सामाजिक उत्थान में भी अविस्मरणीय है। रतन टाटा को उनके अद्वितीय योगदान और सेवाओं के लिए भारत सरकार द्वारा सम्मानित किया गया था। उन्हें वर्ष 2000 में पद्म भूषण और 2008 में पद्म विभूषण जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाज़ा गया।
उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, और ग्रामीण विकास के लिए अनेकों प्रकल्प शुरू किए, जिनसे लाखों लोगों का जीवन सुधरा। रतन टाटा के समाज सेवा के प्रति समर्पण और निःस्वार्थ भाव ने उन्हें एक सच्चा जनसेवक बना दिया। उनका अभाव हमेशा महसूस किया जाएगा, लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य समाज में प्रेरणा बने रहेंगे।
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पाठकों की अपनी हिंदी में लिखी कहानियाँ, लेख, कवितायें इत्यादि का
ई -संवाद पत्रिका में प्रकाशन के लिये स्वागत है।
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"प्रविष्टियाँ भेजने वाले रचनाकारों के लिए दिशा-निर्देश"
1.रचनाओं में एक पक्षीय, कट्टरतावादी, अवैज्ञानिक, सांप्रदायिक, रंग- नस्लभेदी, अतार्किक
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मानवीय दृष्टि अपनाएँ।
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3.अपने बायोडाटा को word और pdf document में भेजें। अपने बायो डेटा में डाक का पता, ईमेल, फोन नंबर ज़रूर भेजें। हाँ, ये सूचनायें हमारी जानकारी के लिए ये आवश्यक हैं। ये समाचार पत्रिका में नहीं छापी जायेगी।
4.अपनी पासपोर्ट साइज़ तस्वीर अलग स्पष्ट पृष्ठभूमि में भेजें।
5.हम केवल उन रचनाओं को प्रकाशित करने की प्रक्रिया करते हैं जो केवल अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति को भेजी जाती हैं। रचना के साथ अप्रकाशित और मौलिक होने का प्रमाणपत्र भी संलग्न करें।
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति
हिंदी लेखन के लिए स्वयंसेवकों की आवश्यकता
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के विभिन्न प्रकाशनों के लिए हम हिंदी (और अंग्रेजी दोनों) में लेखन सेवाओं के लिए समर्पित स्वयंसेवकों की तलाश कर रहे हैं जो आकर्षक और सूचनात्मक लेख, कार्यक्रम सारांश और प्रचार सामग्री आदि तैयार करने में हमारी मदद कर सकें।
यह आपके लेखन कौशल को प्रदर्शित करने, हमारी समृद्ध संस्कृति को दर्शाने और हिंदी साहित्य के प्रति जुनून रखने वाले समान विचारधारा वाले व्यक्तियों से जुड़ने का एक अच्छा अवसर है। यदि आपको लेखन का शौक है और आप इस उद्देश्य के लिए अपना समय और प्रतिभा योगदान करने में रुचि रखते हैं, तो कृपया हमसे alok.iha@gmail.com पर ईमेल द्वारा संपर्क करें। साथ मिलकर, हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देने और संरक्षित करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
प्रबंध सम्पादक: श्री आलोक मिश्र
alok.iha@gmail.com
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“संवाद” की कार्यकारिणी समिति
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प्रबंद्ध संपादक – श्री आलोक मिश्र, NH, alok.iha@gmail.com
संपादक -- डॉ. शैल जैन, OH, shailj53@hotmail.com
सहसंपादक – अलका खंडेलवाल, OH, alkakhandelwal62@gmail.com
डिज़ाइनर – डॉ. शैल जैन, OH, shailj53@hotmail.com
तकनीकी सलाहकार – मनीष जैन, OH, maniff@gmail.com
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रचनाओं में व्यक्त विचार लेखकों के अपने हैं। उनका अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति की रीति - नीति से कोई संबंध नहीं है।
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